Is Maa Ki Kahani Sunkar Ro Padoge Aap
बहुत समय पहले की बात है एक गांव में एक बुढ़िया माई रहती थी उसके दो बेटे थे एक का बेटा था राम और दूसरा कार्ड शाम राम बेटा बड़ा था और बहुत ही समझदार था शाम बेटा भी कम नहीं था वह भी बहुत समझदार था कुछ समय गुजर जाता है बुढ़िया माई दोनों की शादी कर देती हैं और आराम की जिंदगी जीने लगती हैं Is Maa Ki Kahani Sunkar Ro Padoge Aap
अब उनको लगता है कि अब मेरे सर पर कोई मुसीबत नहीं आएगी क्योंकि जो शादी करने का दिन था वह मैंने पूरा कर दिया है अब मैं आराम की जिंदगी जी लूंगा बहु मुझे खाना अच्छी अच्छी बनाकर खिलाएंगे लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ दोस्तों बड़े बेटे राम शहर चला गया कमाने के लिए छोटा बेटा राम घर पर ही किसानी करने लगा दोनों अपने अपने काम में लग गए जो घर पर श्याम बेटा था वह ज्यादातर अपने ससुराल में ही जा कर रहा करता था Is Maa Ki Kahani Sunkar Ro Padoge Aap
और अपनी बीवी को भी ससुराल ही भेज रखा था राम बेटा भी शहर जाने से पहले अपने बीवी को ससुराल ही भेज रखा था उस समय उस बढ़िया मां के दो आंख के तारों को यह नहीं दिखाई दे रहा था कि मेरी मां अब बड़ी हो गई है मेरी मां तो अब चल भी नहीं पाएगी तो बेचारी कैसे रहती होगी कैसे खाना बनाती होगी और कैसे खाती होगी लेकिन ऐसा कौन सोचता है
दोस्तों सिर्फ तो हम अपने बारे में ही सोचते हैं काफी दिन गुजर गया राम बेटा शहर से कमा कर आया और अपने ससुराल डायरेक्ट चला गया वहां पर ससुर का घर बन रहा था उसमें उसने पैसे दिए और अपने बीवी को लेकर अपने घर आया मां जब बेटे को देखें बहुत खुश हुई कि मेरा बेटा आ गया तभी बेटा थोड़ा प्रोफेशनल बन कर आया था
मां ने जब देखा बेटे को बोली बेटा आओ जल्दी से हाथ मुंह धो लो मैं खाना लगा देती हूं खा लो यह बात कहकर बुढ़िया माई के घर में कुछ नहीं था वह सोचने लगी मैं क्या करूं तभी उसने पास के महाजन के घर गई और बोली मुझे कुछ पैसे उधार ही दे दो मेरा बेटा आया है मैं उसके लिए कुछ खाना बनाने वाली हूं अभी आज ही आया है
मैं उससे पैसे कैसे मांग सकती हूं तभी एक गांव का व्यक्ति आया और राम को कहने लगा और राम बेटा आ गए तुम्हारी मां तो बहुत ज्यादा कर्जा लेकर बैठी हुई है लोगों का अब तुम आ गए हो तो उन्हें चुका देना यह बात सुनकर राम बेटा वहां से उल्टे पैर फिर से अपने ससुराल की तरफ भाग गया और मां उधर से खाने की चीजें लेकर आए और देखे कि मेरे बेटे और बहु दोनों में कोई नहीं है
उसने अपने श्याम बेटे से पूछा श्याम बेटा ने कहा ना मैं अभी खेत से आ रहा हूं मुझे क्या मालूम कि कहां गए बुढ़िया माई खाना बनाई अपने शाम बेटे को खिलाई ऐसे करते-करते काफी वक्त गुजर गया अब तो बुढ़िया माई भी नहीं बची थी क्योंकि उनका भी मृत्यु हो गया तो हम लोगों ने अपने माता पिता को दिया है
क्या एक तरफ से देखा जाए तो हमने कुछ नहीं दिया है कहते हैं कि अरे यार मेरी मां बेकार की बोलती है मेरे फादर बेकार के बोलते हैं एक तरह से सपोर्ट करके को जो देखा जाए तो हम लोग बचपन में बहुत छोटे थे जिसे मैं बोलना नहीं आता था जिस समय चलना नहीं आता था मैं उस समय सिर्फ हम उनकी उंगलियों के सहारे से चलते थे बदमाशियां करते थे
लेकिन फिर भी सब कुछ माफ रहता था समय के अनुसार हम तो ढल जाते हैं लेकिन हमारे माता-पिता नहीं डाल पाते हैं वह आज भी पुराने जिंदगी की जिया करते हैं क्योंकि वह पुराने खयालात के होते हैं लेकिन हम इतना मूर्ख किस बातों को भी नहीं समझ पाते हैं मैं जानता हूं दोस्तों इस पोस्ट को जो कोई भी पड़ेगा वह यही सोचेगा कि यार यह तो सभी करते हैं
कौन सा नया चीज है लेकिन इस चीज को हम सुधार नहीं कर पाते हैं आज वह हमारे लिए नहीं होते हैं आज हम उनके लिए होते हैं आज हम पैरों पर खड़ा हैं कुछ समय पहले वह भी अपने पैरों पर खड़ा थे लेकिन उन्होंने सिर्फ हमारी चिंता की और हम अपने बच्चों का चिंता करते हैं घर में चीजें पुरानी हो जाते हैं निकाल देना चाहिए यही परंपरा चला आ रहा है इस देश में कैसे लगे कहानी दोस्तों कमेंट करके जरूर बताइएगा धन्यवाद