nepaalee vyaapaaree Hindi Kids Story
रायचंद नाम का व्यापारी बर्फीले पहाड़ों में रहता था जो कंबल बनाकर उसका व्यापार करता था रायचंद के पास बहुत सारी भीड़ थी रायचंद अपने फ्रेंड से उन इकट्ठा करता और उसके बाद रायचंद अपनी पत्नी के साथ बैठकर स्वेटर और कंबल बनाता है दोनों के स्वेटर और कंबल की कारीगरी बहुत ही सुंदर थी जब सारे उनसे कंबल और स्वेटर बन जाते हैं रायचंद उन्हें अपने घोड़ों पर लादकर शहर में व्यापार करने के लिए निकल पड़ता रायचंद थोड़ी दूर जंगल में आया तभी एक व्यक्ति दिखाई देता है और उसका एक्शन से पूछता है क्या तुम शहर जा रहे हो रायचंद जवाब देते हैं हां मैं शहर जा रहा हूं वह मुसाफिर पूछता है क्या मैं भी तुम्हारे साथ अफेयर चल सकता हूं रायचंद जवाब देते हैं हां क्यों नहीं बिल्कुल आप मेरे साथ चल सकते हैं आओ साथ चलते हैं और अपना नाम बताता है
मैं जय सिंह हूं और शहर में मेरा बहुत ही बड़ा कारोबार है और उसके बाद रायचंद बनाते हैं मैं एक व्यापारी हूं जो उन से स्वेटर और कंबल बनाकर बाजार में ले जा कर भेजता हूं तभी वह मुसाफिर जयसिंह बोलता है कि क्या मैं तुम्हारे स्वेटर और कंबल देख सकता हूं रायचंद बोलता है क्यों नहीं बिल्कुल देख सकते हो और रायचंद घोड़े पर से उतर कर और अपने स्वेटर और कंबल को दिखाने लगता है यह देखकर मुसाफिर जयसिंह बोलता है तुम्हारे स्वेटर और कंबल तो बहुत ही अच्छे हैं और यह कहकर फिर से बाजार की तरफ चल पड़ते हैं और जैसे ही बाजार में पहुंचते हैं तो वहां पर रायचंद कहते हैं कि चलो भाई अब मैं चलता हूं तभी वह मुसाफिर जयसिंह बोलता है चलता हूं पहले मेरे सामान तो लौटा दो तभी रायचंद बोलता है अरे सामान तो मेरा है
मैं क्यों लौटा हूं तभी जयसिंह बोलता है अरे यह तो मैंने तुम्हें अपने साथ आने भी दिया और अब कह रहे हो कि सामान मेरा है यह सामान मेरा है यह सुनकर बाजार में बहुत ही लोग इकट्ठा हो गए और उनके झगड़े को देख कर कहा तुम दोनों नायक जी के पास जाओ वह इस शहर का सभी समस्याओं को हल करते हैं तुम्हारी समस्या भी जरूर हल कर देंगे वह दोनों नायक जी के घर गए नायक जी देखते ही बोले चलिए बताइए आप दोनों की समस्या क्या है और उसके बाद रायसेन अपनी पूरी बात बताते हैं स्वेटर और कंबलों का व्यापारी हूं मैं और वह सारी बातों को बता देते हैं सभी जयसिंह बोलते हैं कि नहीं नायक जी यह झूठ बोल रहे हैं मैं भी एक व्यापारी हूं मेरी शहर में दुकान भी है मैं नेपाल से कंबल और स्वेटर लेकर ही लौट रहा था यह महाशय मिल गया मेरे साथ यह शहर आए मेरे सामान को अपना बता रहे हैं तभी नायक जी बोले अरे यह क्या दोनों में से कोई तो झूठ बोल रहा है
तभी नायक जी बोले कि अगर जो तुम्हारे समान है तो तुम्हें इसके बारे में पता तो जरुर होगा तभी रायचंद कहते हैं नहीं महाराज नायक जी बात यह है कि मैं इन्हें जंगल में अपनी सारी वस्तुओं को दिखाया था तो इनको सारा वस्त्र पता ही होगा और नायक जी कुछ सोचने लगे उसके बाद अब फैसला करना बहुत ही मुश्किल है तुम सामान को दो हिस्से में बराबर बांट लो लेकिन यह मेरी साल भर की मेहनत है रायचंद कहने लगे तभी जयसिंह भी बोले तुम्हारी नहीं मेरी मेहनत है तभी नायक जी बोलते हैं बस बहुत हो गया तुम दोनों आपस में सामान बांट लो तभी रायचंद कहते हैं ठीक है नायक जी बात मानकर कंबल और स्वेटर को बांट लिया फिर नायक जी रायचंद के पास हो गए और कहने लगे रायचंद जो तुम्हारा नुकसान हुआ है अब जो कुछ तुम्हारे पास बचा है
वह तुम मुझे कितने में बेचोगे तभी रायचंद भोले 500 सीटों में तभी नायक जी कहने लगे मैं तुम्हें ढाई सौ सिक्के दे सकता हूं तभी बोला रायचंद नहीं हो पाएगा महाराज साल भर की मेहनत है इतने घाटे में नहीं भेज सकता फिर नायक जी जय सिंह के पास गए बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ जो कुछ भी है तुम्हारे पास वह मुझे भेज सकते हो आप सच में खरीदना चाहते हैं जय सिंह बोले तभी जयसिंह कहने लगे नेकी और पूछ पूछ एक जी कहने लगे क्या दाम है इन सब का 500 सिक्के जय सिंह का है और नायक जी कहने लगे मैं इन सब का तुम्हें ढाई सौ सिक्के ही दे सकता हूं तभी जयसिंह बोले जरूर ठीक है चलिए तभी नायक जी बोले तुम झूठे हो यह तुम्हारा सामान नहीं है अगर जो तुम सच में सामान के मालिक होते तुम आधे दाम में इनको बेचने के लिए कभी भी राजी नहीं होते जयसिंह की बेईमानी पकड़ी गई तुम्हें इसके लिए रायचंद को 500 सीटों का जुर्माना देना होगा रायचंद को 500 सिक्के मिले वह अपना सामान वापस पा कर बहुत खुश हुआ इसीलिए कहते हैं दोस्तों सच्चाई की हमेशा जीत होती है आप 1 दिन झूठ बोलते हैं 2 दिन झूठ बोलते हैं तीसरे दिन आपकी झूठ जो है वह पकड़ी जाती है तो कभी भी दोस्तों सच्चाई की तरफ चलना चाहिए धन्यवाद